योग का महत्व Importance of Yoga
योग क्या है?
योग मेरे और मेरे ही वास्तविक स्वरूप मध्य पड़े पर्दे को हटाने का माध्यम है।
योग का अर्थ
सरल शब्दों में तो यहीं है योग का वास्तविक अर्थ जिसकी बात हमनें अभी की।
अगर शाब्दिक रूप से योग का अर्थ देखें तो योग अर्थात् ‘जोड़ना‘।
तीन प्रश्न
अब यहाँ प्रश्न उठता है कि किसे किससे जोड़ना है? कहाँ जोड़ना? मैं और मेरे वास्तविक स्वरूप के बीच कौन-सा पर्दा है? योग इस पर्दे को को किस तरह से हटाता है?
यहाँ तीन प्रश्न है और इन तीन प्रश्नों के उत्तर दो स्वरूपों में दिए जा सकते है; आध्यात्मिक और सांसारिक।
प्रश्नों के उत्तर
पहला प्रश्न ‘किसे किससे जोड़ना है, कहाँ जोड़ना है?’ अगर हम अध्यात्म के स्वरूप में विचार करें तो हमें स्वयं से यह पूछना होगा कि “मैं कौन हूं?” यह प्रश्न और इसके उत्तर को खोजने की राह में हमें जीवन के सत्य और उसकी वास्तविकता का ज्ञान हो जाता है। क्योंकि प्रश्न स्वयं को जानने का है और जो कोई स्वयं के सत्य को जान लेता है, वह इस जीवन के सत्य को भी जान लेता है और यह भी जान लेता है कि योग अहम् नाम के पर्दे को हटाकर, अहंकार को हटाकर हमारे वास्तविक चिदानंद स्वरूप का ज्ञान करा देता है।
इसी में हमारे दूसरे प्रश्न का उत्तर की समाहित है। कि ‘मैं और मेरे वास्तविक स्वरूप के मध्य कौन सा पर्दा है?’ वह है अहंकार।
मनुष्य सत्य जानता है कि यदि जन्म लिया है तो इस शरीर की मृत्यु भी होगी। फिर भी शरीर के द्वारा न करने योग्य कर्म करता है और सदा अहंकार में रहता है और कभी अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानने का प्रयास नहीं करता जो कि अजर है, अमर है, सनातन है और जिसका स्वरूप सच्चिदानंद है।
तीसरा प्रश्न ‘योग इस पर्दे को किस तरह से हटाता है?’ अब इस प्रश्न का उत्तर संसार से शुरू होता है। जब कोई व्यक्ति पहली बार योग को जीवन में लाता है तो वह शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को ठीक करने के विचार से या स्वस्थ बने रहने के विचार से लाता है। वह केवल योगासनों और प्राणायाम को ही योग मान लेता है। यह वास्तव में सत्य जानने की ओर पहला कदम होता है तो फिर इस प्रकार का विचार प्रारंभ में अनुचित भी नहीं है क्योंकि जैसे-जैसे व्यक्ति, शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होने लगता है तो उसके विचारों को नया आयाम मिलने लगता है।
योग और विचार
योगासन, प्राणायाम आदि का सर्वप्रथम लाभ यह है कि यह शरीर और मन को तो पूर्ण स्वस्थ करता ही है, साथ ही विचारों को भी शुद्ध कर देता है।
विज्ञान कहता है कि हम विचारों का सागर है। यदि हमसे विचारों को निकाल दिया जाए तो हम अपना अस्तित्व ही भूल जाएंगे।
योग हमारे विचारों को फ़िल्टर करता है। विचारों के सागर से सही विचार चुनने का विवेक विकसित करता है। जिससे हम अधिक बुद्धिमान और समझदार बनते हैं, समझदार मनुष्य सदा ही सुख पाते हैं। किसी वस्तु की समझ न होना या किसी कार्य को करने की समझ न होना भी तो व्यक्ति के दुःख का कारण है।
योग और समझ
जो समझदार है, जो वस्तुओं का वास्तविक स्वरूप देख लेता है, सत्य को जान लेता है, वही व्यक्ति ही तो सुखी है। ऐसा व्यक्ति ही अपने जीवन में, अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करता है। संसार में तो सफल होता ही है। साथ ही योग के द्वारा मैं और मेरे वास्तविक स्वरूप के मध्य पड़े पर्दे को हटाकर अध्यात्म को आत्मा के ज्ञान को अर्थात् स्वयं के सत्य को जानकर सुख से जीवन जीता है।